नामदेव के निधन पर साहित्य जगत में शोक

नामदेव ढसाल
प्रख्यात कवि एवं दलित अधिकार कार्यकर्ता नामदेव ढसाल के निधन पर मराठी साहित्य एवं विचार जगत में दुःख व्याप्त है. उनके पुराने सहयोगी तथा राजनीतिक साथी और विरोधी भी उन्हें एक बाग़ी विचारक और कार्यकर्ता के रूप में याद करना पसंद करते हैं.
डॉक्टर बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर के पोते और भारिप बहुजन महासंघ पार्टी के अध्यक्ष डॉक्टर प्रकाश अंबेडकर कभी ढसाल के सहयोगी तो कभी विरोधी रहे हैं. उनका कहना है कि ढसाल एक उत्कृष्ट कवि थे.

पुणे विश्वविद्यालय में महात्मा फुले अध्यासन के प्रोफ़ेसर और साहित्यिक हरी नरके ने कहा, "फूले, आंबेडकर और मार्क्स की विचारधारा आम लोगों तक पहुंचाना, यही "कई लोग जीवन में विचारों के क्षेत्र में पिछड़ जाते हैं. लेकिन ढसाल ने मार्क्सवादी आंदोलन से शुरुआत की और वे आगे बढते गए. एक विवेकशील नेता के रूप में उन्होंने स्वयं को स्थापित किया. मै उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं."
क्लिक करेंढसाल की विचारधारा की विरासत होगी."

कविताओं में पीड़ा

उन्होंने कहा, "आज अंबेडकरवादी आंदोलन कुछ जातियों तक सीमित हो चुका है, लेकिन यह अंबेडकरवाद की नहीं, बल्कि उनके बाद की पीढ़ियों की सीमा है. ढसाल ने यह सीमा लांघते हुए क्लिक करेंदलितों के साथ आदिवासी तथा अन्य घटकों को भी इस विचारधारा में शामिल किया."
प्रोफ़ेसर नरके ने कहा, "प्रतिभा की दृष्टि से देखा जाए तो तुकाराम के बाद सबसे विद्रोही कवि के रूप में ढसाल जाने जा सकते है. वे मराठी कविता को वैश्विक साहित्य के आसमान तक ले गए. साथ ही दलित कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने अन्याय के विरोध में लड़ाई लड़ी."
उन्होंने कहा, "इस बीच उन्हें कुछ वैचारिक समझौते करने पड़े लेकिन उन्होंने केवल शब्दों के बजाए वास्तविक व्यवहार को अधिक महत्व दिया. भविष्य में यह मुद्दा और भी महत्त्वपूर्ण होने वाला है."
क्लिक करेंघुमंतू जनजाति से आए कार्यकर्ता और साहित्य अकादमी तथा सार्क लिटररी पुरस्कार प्राप्त लक्ष्मण गायकवाड कहते है, "उन्मुक्त और बिंदास जीवन जीने वाला एक असाधारण लेखक हमारे बीच से चला गया है."

पीड़ा का आक्रोश

नामदेव ढसाल
उन्होंने कहा, "ढसाल ने वैश्विक साहित्य में मराठी साहित्य की छाप छोड़ी है. वे केवल दलित साहित्यकार नहीं थे, उन्होंने पूरे मराठी साहित्य को प्रतिष्ठा दिलाई है. वे लेखक और कार्यकर्ता दोनों थे. जितना रूखा सूखा उनका बोलना था उतना ही उनके मन में साफ़गोई और भोलापन था."
ख़ुद गायकवाड और ढसाल काफ़ी नजदीक थे और गायकवाड कहते हैं, "ढसाल एवं उनके समकालीन लेखकों ने दलित लेखकों की एक पीढ़ी को प्रेरित किया."
उन्होंने कहा, "साठ के दशक में दलित साहित्य ने पूरे समाज को झकझोर दिया था और हमारे जैसे कई लेखक उससे प्रेरित हुए."
गायकवाड ने कहा, "मेरे उनसे व्यक्तिगत रिश्ते थे. कुछ ही दिन पूर्व मैं उनसे मिला था, लेकिन आज उनके जाने के बाद मुझे लगता है कि मुझे उनसे पिछले तीन चार दिनों में मिलना चाहिए था."

मराठी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष एवं दलित साहित्यिकों में शुमार एफएम शिंदे ने भी ढसाल के निधन पर दुःख व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि ढसाल की कविताओं में अपार पीड़ा का आक्रोश है.